आज का युग तकनीकी क्रांति का युग है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, AI ) जैसे अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों ने हमारे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। इसके बावजूद, केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी का कहना है कि दुनिया को अब भी मानव मस्तिष्क, दिल और हाथ की जरूरत है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की वार्षिक बैठक में उन्होंने इस विषय पर गहराई से चर्चा की और बताया कि क्यों एआई इंसान की पूरी तरह जगह नहीं ले सकता।
क्यों जरूरी है मानव मस्तिष्क, दिल और हाथ?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने उन क्षेत्रों में भी अपनी जगह बनाई है जहां पहले केवल इंसानी दिमाग और मेहनत की जरूरत होती थी। फिर भी, जयंत चौधरी का मानना है कि एआई के विकास के बावजूद, मानव मस्तिष्क की रचनात्मकता, दिल की संवेदनशीलता और हाथों की कुशलता का कोई विकल्प नहीं है।
1. मस्तिष्क: सोचने और निर्णय लेने की क्षमता
एआई मशीनें गणना और तर्क में तेज हो सकती हैं, लेकिन रचनात्मकता, तर्क और नैतिकता में मानव मस्तिष्क से आगे नहीं बढ़ सकतीं।
- मानव रचनात्मकता: एआई केवल उस डेटा पर आधारित है जिसे उसे दिया गया है, जबकि इंसान नई चीजें सोच सकता है और मौलिक विचार विकसित कर सकता है।
- मूल्य आधारित निर्णय: कई बार ऐसे निर्णय लेने की जरूरत होती है जहां नैतिकता, सामाजिक संदर्भ और इंसानी भावना की भूमिका होती है।
2. दिल: भावनाओं की समझ
एआई भावनाओं को समझने और उनका अनुकरण करने की कोशिश कर सकता है, लेकिन वह उन्हें महसूस नहीं कर सकता।
- संवेदनशीलता: एक डॉक्टर, शिक्षक या सामाजिक कार्यकर्ता की तरह किसी की भावनाओं को समझना और सहानुभूति दिखाना केवल इंसान ही कर सकता है।
- संबंधों का महत्व: ग्राहक सेवा से लेकर मनोविज्ञान तक, हर क्षेत्र में इंसानी जुड़ाव महत्वपूर्ण है।
3. हाथ: क्रियान्वयन और सृजन की क्षमता
एआई मशीनें तेज और सटीक हो सकती हैं, लेकिन इंसानी हाथों का कौशल और उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों की बारीकी को मशीनें कभी पूरी तरह दोहरा नहीं सकतीं।
एआई को ‘आकारहीन’ क्यों कहा गया?
जयंत चौधरी ने हल्के-फुल्के अंदाज में एआई को ‘आकारहीन’ कहकर भारतीय संदर्भ में इसे ‘नकली’ या ‘गैरवास्तविक’ के रूप में वर्णित किया। उन्होंने यह बात स्पष्ट की कि एआई वास्तविकता का सिर्फ एक रूप है, लेकिन यह मानवता का विकल्प नहीं बन सकता।
एआई: वास्तविक और कृत्रिम का अंतर
- एआई वास्तविकता का अनुकरण करता है, लेकिन वह वास्तविकता नहीं है।
- भारतीय समाज में ‘कृत्रिम’ शब्द को अक्सर ‘नकली’ के रूप में देखा जाता है। इसी संदर्भ में चौधरी ने इसे ‘आकारहीन’ कहा।
भारत में कौशल विकास की आवश्यकता
जयंत चौधरी ने इस बात पर जोर दिया कि एआई के विकास के बावजूद, भारत को अपनी युवा पीढ़ी को उन कौशलों से लैस करना होगा जो भविष्य में दुनिया भर में उपयोगी साबित हो सकें।
1. शिक्षा में सुधार
चौधरी ने कहा कि भारत का लक्ष्य स्कूल स्तर से ही बच्चों को भविष्य की जरूरतों के अनुसार तैयार करना है।
- नवाचार और क्रिएटिविटी को बढ़ावा
- तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना
2. अवरोधों को दूर करना
उन्होंने कहा, “मेरा काम अवरोधों को तोड़ना है।” इसका मतलब है कि शिक्षा और कौशल विकास में आने वाली सभी चुनौतियों को हल किया जाए।
3. वैश्विक स्तर पर मान्यता
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वे ऐसी स्थिति नहीं देखना चाहते, जहां भारतीय कर्मचारियों को यह कहा जाए कि वे किसी काम के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं।
एआई में बड़े निवेश और स्किल गैप
आज दुनिया भर की कंपनियां एआई और डिजिटल बुनियादी ढांचे में भारी निवेश कर रही हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल $240 बिलियन से अधिक का निवेश एआई में किया जा रहा है।
डिजिटल स्किल गैप: बड़ी चुनौती
एआई के विकास के बावजूद, डिजिटल स्किल्स की कमी कंपनियों और संगठनों के लिए एक बड़ी बाधा बन रही है।
- स्किल गैप को भरने की जरूरत: डिजिटल परिवर्तन को सफल बनाने के लिए कौशल का अंतर खत्म करना अनिवार्य है।
- सहयोगात्मक प्रयास: विभिन्न उद्योगों और सरकार के बीच सहयोग आवश्यक है।
आगे की रणनीति
चौधरी ने इस विषय पर जोर दिया कि स्किल गैप को भरने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयासों की जरूरत है। इसमें उद्योग और शिक्षा क्षेत्र के बीच साझेदारी, प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रोत्साहन योजना शामिल होनी चाहिए।
सत्र में क्या-क्या हुआ?
डब्ल्यूईएफ के सत्र में विभिन्न उद्योगों के सीईओ और प्रतिनिधियों ने कौशल विकास, प्रतिस्पर्धा और उत्पादकता पर विचार-विमर्श किया।
- मूल विषय: बुद्धिमान युग में पुनः कौशलीकरण (Reskilling in the Age of Intelligence)।
- उद्देश्य: कौशल अंतर को भरकर प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादकता को बढ़ाना।
भविष्य की संभावनाएं और जिम्मेदारियां
1. एआई और मानवता का तालमेल
भविष्य में एआई और मानव मस्तिष्क को मिलाकर काम करने की संभावनाएं अधिक होंगी।
- एआई को इंसानी प्रयासों के पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए।
- यह इंसानों की दक्षता को बढ़ा सकता है, लेकिन उसे प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।
2. शिक्षा और कौशल विकास में निवेश
भारत को शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में बड़े निवेश करने होंगे ताकि युवा पीढ़ी एआई के युग में खुद को स्थापित कर सके।
3. रोजगार के नए अवसर
एआई और तकनीकी विकास से नए प्रकार के रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इसके लिए युवाओं को तैयार करना होगा।
जयंत चौधरी का यह दृष्टिकोण कि “दुनिया को अभी भी मानव मस्तिष्क, दिल और हाथ की जरूरत है,” हमें याद दिलाता है कि तकनीकी प्रगति के बावजूद, इंसानी संवेदनशीलता, रचनात्मकता और कौशल का महत्व कभी कम नहीं होगा। एआई के युग में भी मानवता की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
एआई और इंसान एक-दूसरे के पूरक बन सकते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब हम भविष्य की जरूरतों के अनुरूप अपनी शिक्षा और कौशल विकास प्रणाली को तैयार करें। भारत जैसे युवा देश के लिए, यह न केवल एक चुनौती है, बल्कि एक बड़ा अवसर भी।